Thursday 27 July 2017

जुलाई 2017 अंक

जुलाई 2017 अंक

ं आपत्ति- ऐटमबम, हाईड्रोजन बम, आदि चमत्कारपूर्ण आविष्कारों व उपलब्धियों के बारे में, जिन्हें मानव जीवन की व पृथ्वी की काया पलट दी है (वेद, तौरते, इन्जील व कुरआन आदि में) एक भी शब्द नही मिलता, न उनमें हाल ही में हुए भयंकर विश्व युद्धों को कोई संकेत है।


उत्तर- जैसा मैं ने प्रारम्भ में कहा था कि मैं अपने आपको कुरआन पर आप द्वारा दी गई आपत्तियों के उत्तरों तक सीमित रखूंगा क्योंकि आपके लेख का असल निशाना वही है -कुरआन में अगर आप ऐटमबम, हाईड्रोजन बम, हीराशिमा या नागासाकी के नाम से तलाश करेंगे तो निश्चय ही निराशा होगी परन्तु मूल संकेत हर वस्तु के मिलते हैं। जब मान मस्तिष्क की पहुंच उस मुकाम तक भी न हुई थी कि मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त भी किसी चीज के जोडे़ हो सकते हैं, उस समय कुरआन ने यह नियम दिया था कि पेड़ पौधे ही नही बल्कि निर्जीव वस्तुओं में भी जोड़ों की व्यवस्था होती है। -पवित्र है वह जिसने हर वस्तु के जोड़े बनाये, चाहे वह पृथ्वी की वनस्पति में से हो या स्वयं उनके अपने अस्तित्व (अर्थात मानव जाति) में से या उन वस्तुओे में से जिनको यह (अभी तक) जानते ही नही’ (36ः36)। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक कभी किसी ने कल्पना भी नही कि थी कि प्रत्येक निर्जीव दिखने वाली वस्तु के सबसे सूक्षम कण ऐटम में इलैक्ट्रान और प्रोट्राॅन के जोड़े होते हैं। हर ऐटम के अपने अन्दर निरन्तर गति की एक व्यवस्था होती है। इसका भी संकेत कुरआन ने 1400 वर्ष पूर्व दिया था।
‘पर्वतों को देख कर तुम यह समझते हो कि यह ठोस और स्थिर है जबकि (उनके कण तो) बादलों की तरह उड़ते फिर रहे हैं, यह अल्लाह का चमत्कार है कि (कणों की गति के होने पर भी) उसने हर वस्तु को ठोस व स्थिर कर रखा है। जैसे वह उन उस्तुओं की जानकारी रखता है जिनसे तुम अनभिज्ञ हो, इसी प्रकार जो कुछ तुम करते हो उस सबका भी उसे ज्ञान है।’ (27ः88)। परमाणु शक्ति का प्रयोग भी मनुष्य करेगा और उससे कितना भयंकर विनाश होगा इसका संकेत दे दिया गया था।
’उन लोगों ने बड़े-बड़े षडयन्त्र रचे और उनके दांव अल्लाह के नियन्त्रण में हैं। यद्यपि यह प्रयत्न ऐसे थे कि उनके पर्वत भी उलट जायें’ (14ः46)। ‘क्या वे लोग जो बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते रहते हैं इस बात से निश्चित हो गये हैं कि (उनके इन प्रयासों के फलस्वरूप् उनकी ओर की पृथवी फट जाये) और अल्लाह उन्हें पृथ्वी में समा दे अथवा (उनकी हरकतों के फलस्वरूप) उन पर ऐसी दिशा से प्रकोप आये जिसका उन्हें ज्ञान भी न हो’ (16ः45)। उनके परस्पर युद्ध के फलस्वरूप जिस तरह के विनाश होंगे उनमें धमाकों का वर्णन अब यह किसी भी चीज का प्रतीक्षा नही कर रहे हैं। सिवाये एक भयंकर धमाके के, जो उस वक्त उनको ग्रस्त कर लेगा जब वह लड़ रहे होगे।’ (36ः39)। ऐटमी ताबकारी (रेडियेशन) का धुंआ जब उनको ढक लेता और उससे तड़प-तड़प कर और सिसक-सिसक कर लोग मर रहे होंगे उस समय ही स्थिति का वर्णन ‘तुम उस दिन की प्रतीक्षा करो जिस दिन वायुमण्डल का जाने पहचाने धुंए (ताबकारी-रेडियेशन) से भर जायेगा जो लोगांे पर छा जायेगा। यह बड़ा पीड़ा दायक प्रकोप होगा (फिर लोग प्रार्थना करेंगे कि) हे हमारे रब हमसे इस प्रकोप को दूर कर दीजिए हम ईमान लाते हैं। वह कब सदुपदेश ग्रहण करते हैं। हांलाकि उनके पास ईशदूत आ चुका था फिर ये लोग उससे मुंह मोड़ते रहे और वही कहते रहे कि यह (व्यक्ति) सिखलाया हुआ है, दिवाना है। हम कुछ समय के लिए इस महामारी से हटा लेंगे तो तुम फिर अपनी प्रथम अवस्था पर लौट आओगे।’ (44ः10 से 15)। इन्कार करने वाले आखिर और क्या देखने के बाद आस्था व्यक्त करेंगे ? कुरआन में तो चैदह सौ वर्ष पहले यह भी बता दिया गया था कि इन धमाकों के फलस्वरूप जो विनाश होगा उसके मुजरिम नीली आखों वाले अर्थात पश्चिमी देशों के लोग होंगे जिस दिन शंखनाद होगा। (सूर फूंका जायेगा अर्थात बड़ा भयंकर धमाका होगा), उस दिन जो मुजरिम हमारे समक्ष उपस्थित किये जायेंगे वह नीली आंखो वाले होंगे।’ (20ः102)। दिवाकर साहब, स्वयं निरूपक्ष हो कर विचार कीजिए। क्या यह चैदह सौ वर्ष पूर्व के किसी मनुष्य का कथन है ?




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